
महाराष्ट्र में सड़क, पुल और मेट्रो जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाओं से जुड़े ठेकेदार आज हताश और निराश हैं। उनका दावा है कि राज्य सरकार ने उनके 89,000 करोड़ रुपये के बिलों का भुगतान नहीं किया। इस अन्याय के खिलाफ ठेकेदारों ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है। मुंबई, नागपुर और छत्रपति संभाजीनगर में याचिकाएँ दायर करने की तैयारी चल रही है।
इस देरी ने न केवल ठेकेदारों को आर्थिक रूप से तोड़ दिया, बल्कि कई परियोजनाएँ भी अधर में लटक गईं। पुणे-मुंबई एक्सप्रेसवे का विस्तार और नागपुर मेट्रो के कुछ हिस्से जैसे प्रोजेक्ट रुके हुए हैं। ठेकेदारों के संगठन के प्रमुख संजय पाटिल ने कहा, “हमने अपनी पूंजी और मेहनत लगाई, लेकिन सरकार की उदासीनता ने हमें कंगाल कर दिया।”
यह मामला महाराष्ट्र में प्रशासनिक अक्षमता और वित्तीय कुप्रबंधन का जीता-जागता सबूत है। ठेकेदारों का कहना है कि उनका धैर्य अब जवाब दे रहा है। क्या कोर्ट से उन्हें न्याय मिलेगा, या यह अन्याय और गहराएगा? यह सवाल न केवल ठेकेदारों, बल्कि पूरे राज्य के विकास से जुड़ा है।