
पिछले दो दिनों से व्हाट्सएप स्टेटस, फेसबुक, और दूसरे सोशल मीडिया मंचों पर “I Love Muhammad” का लोगो हर तरफ नजर आ रहा है। यह सिलसिला उत्तर प्रदेश के कानपुर में ईद ए मिलाद के जुलुस के मौके पर कुछ नौजवानों पर मोहल्ले में पैदा किये गए हालातों की वजह से हुवे एफआईआर को नौजवान मुसलमान पर “I Love Muhammad” का पोस्टर लगाने के लिए FIR दर्ज किया गया ऐसा बताकर सनसनी पैदा करने की कोशिश करने से शुरू हुवा। फैलाई गयी अफवाह बिलकुल गलत और बेतुकी है जिस बारे में खुद कानपूर पुलिस ने मिडिया के सामने आकर सच्चाई बताई.
बेशक, नबी से मोहब्बत का इजहार करनेवाले बोर्ड के नाम पर FIR के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है लेकिन हमने मामले को बिना जाने ही अफवाहों पर बिना मतलब का तमाशा शुरू कर दिया और कुछ पब्लिक फिगर मौलानाओं ने तो बयानबाजी शुरू कर दी और बिना सोचे समझे लोगों को जज्बाती करने लगे. मुसलमान समाज के मौलाना अगर इतने ही जज़्बात समाज के बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए पैदा करते तो आज बिना मालूमात के अपना खुद का तमाशा नहीं बनाते. खैर ! अब असल मुद्दे पर आते है. सवाल यह है: क्या व्हाट्सएप पर लोगो लगाने से मोहब्बत जाहिर हो जाएगी? और इसे लगाकर हम किसे दिखाना चाहते हैं? अपने व्हाट्सएप कॉन्टैक्ट्स को, जो पहले से जानते हैं कि हम मुसलमान हैं और हमारे नबी (स.अ.व.) से हमें बेपनाह मोहब्बत है? फिर इसका क्या मतलब?
मोहब्बत का दिखावा या असली जिम्मेदारी?
मुसलमानों, यह दिखावे की मोहब्बत जाहिर करके अपनी असली जिम्मेदारी से मुँह मत मोड़ो। हमने अपने नबी (स.अ.व.) की शान को मस्जिदों तक सीमित कर दिया है। जिन्हें पहले से पता है, उन्हें बार-बार बताने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि हमारे नबी (स.अ.व.) की सीरत इतनी बुलंद थी कि उनके चलने की अदा से लोग ईमान कुबूल कर लेते थे। लेकिन हमने उनकी सीरत को अपने अंदर उतारा ही नहीं। हम सिर्फ जज्बाती बनकर रह गए, और खुद को रहनुमा बताने वाले नेताओं के इशारों पर नाचते रहे।
हमारा फर्ज था कि हम दुनिया को बताएँ कि हमारे नबी (स.अ.व.) की शान क्या है। उनकी जिंदगी इंसानियत, शांति, और मोहब्बत की मिसाल थी। लेकिन हमने यह पैगाम फैलाने की कोशिश ही नहीं की। हम मस्जिदों के मीनारों से चिल्लाकर यह नहीं बताते कि हम अपने नबी से कितना प्यार करते हैं। हमारी जिंदगी, हमारे अखलाक, और हमारे अमल को देखकर दुनिया को यह समझना चाहिए कि मुसलमानों का नबी इंसानियत की मिसाल है।
ईद-ए-मिलाद का मौका: खोया हुआ अवसर
ईद-ए-मिलादुन्नबी जैसे पवित्र मौके पर हम नेताओं की शान चमकाने में लगे रहे। अगर हमने इन मौकों पर नबी (स.अ.व.) की सीरत को दुनिया के सामने रखा होता, तो आज गैर-मुस्लिम भाई भी उनके बारे में जानते। वे हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस तरह की FIR का विरोध करते। लेकिन अफसोस, हम अपने मोहल्ले, अपने शहर, अपने पड़ोस में वह मोहब्बत पैदा नहीं कर पाए। लोग शिकायत करते हैं कि “हम कितना भी अच्छा करें, हमारे साथ जुल्म होता है, हमें परेशान किया जाता है।” लेकिन क्या हमने कभी अपने नबी (स.अ.व.) को दी गई तकलीफों के बारे में सोचा? क्या हमने उनकी सीरत को दुनिया तक पहुँचाने की कोशिश की?
सूफियों का पैगाम: मोहब्बत से बदलाव
कहा जाता है कि इस्लाम तलवार के दम पर फैला। लेकिन हकीकत यह है कि सूफियों ने मोहब्बत, अखलाक, और इंसानियत से इस्लाम को लोगों के दिलों में बसाया। इस वतन से मोहब्बत हमारे ईमान का हिस्सा है। इस देश के लोग हमारे अपने हैं। अगर हम अपनी जिंदगी में नबी (स.अ.व.) की सीरत को अपनाएँ, तो हमें “I Love Muhammad” का लोगो अपने स्टेटस पर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हमारा पड़ोसी, हमारा दोस्त, हमारा साथी खुद इस तरह की FIR का विरोध करेगा। हमें चिल्लाकर यह बताने की जरूरत नहीं कि हम अपने नबी से कितना प्यार करते हैं। हमारी जिंदगी और हमारे अमल यह बात चीख-चीखकर बताएँगे।
जज्बात छोड़ो, जिम्मेदारी निभाओ
लोग जज्बात में कहते हैं, “I Love Muhammad बोलने की सजा फाँसी भी हो, तो हम तैयार हैं।” बेशक, हर मुसलमान—चाहे बच्चा हो या बुजुर्ग—इसके लिए तैयार है। लेकिन क्या मोहब्बत जाहिर करने का यही तरीका है? क्या लोगो लगाकर या नारे लगाकर हम अपनी जिम्मेदारी से भाग जाएँगे? हमारा फर्ज है कि हम नबी (स.अ.व.) की सीरत को दुनिया तक पहुँचाएँ। गैर-मुस्लिम भाइयों को समझाएँ कि उनके मन में इस्लाम और हमारे नबी (स.अ.व.) के बारे में जो गलतफहमियाँ हैं, वे क्यों गलत हैं। हमें समाज के समझदार लोगों को यह जिम्मेदारी देनी होगी कि वे दूसरों को बताएँ कि मुसलमानों का नबी इंसानियत की मिसाल है।
बदलाव का रास्ता: अपने आप से शुरूआत
मुसलमानों, दूसरों से शिकायत करने से पहले खुद में बदलाव लाओ। अगर हम अपनी जिंदगी में नबी (स.अ.व.) की सीरत को उतारें—उनकी सादगी, उनकी शांति, उनकी इंसानियत—तो समाज अपने आप बदल जाएगा। हमें मस्जिदों में, मोहल्लों में, और अपने रोजमर्रा के अमल में बदलाव लाना होगा। हमें अपने पड़ोसियों, अपने शहरवासियों, अपने देशवासियों के साथ वह मोहब्बत और भाईचारा कायम करना होगा, जो हमारे नबी (स.अ.व.) की सीरत का हिस्सा था। तभी वह माहौल बनेगा, जहाँ FIR जैसे हालात पैदा ही नहीं होंगे।
आह्वान: इंकलाब लाओ
यह लेख हर उस शख्स के लिए है, जो इसे पढ़ रहा है। अपने दिल से पूछो: क्या सिर्फ व्हाट्सएप पर लोगो लगाना मोहब्बत है? क्या हम अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं? हमें जज्बात छोड़कर अमल की तरफ बढ़ना होगा। अपने नबी (स.अ.व.) की सीरत को अपनी जिंदगी में उतारो। अपने पड़ोस में, अपने शहर में, अपने देश में वह मोहब्बत और इंसानियत फैलाओ, जो हमारे नबी (स.अ.व.) का पैगाम थी। तभी हमारा समाज बदलेगा, और तभी दुनिया हमारे नबी की शान को जानेगी।अल्लाह हमें अपने प्यारे नबी (स.अ.व.) की राह पर चलने और हक को बयान करने की तौफीक दे। अगर इस लेख में कोई चूक हुई, तो उम्मत-ए-मोहम्मदिया से माफी।
“मोहब्बत का इजहार लफ्जों से नहीं, अमल से होता है,
नबी की सीरत को जिंदगी में उतारो, यही सच्चा रास्ता है।”
शुक्रिया।
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