
जम्मू-कश्मीर की वादियाँ, जो कभी अपनी खूबसूरती के लिए जानी जाती थीं, आज फिर खून से लाल हो गईं। 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पाँच जिंदगियों को छीन लिया—तीन सैनिक और दो स्थानीय नागरिक, जिनमें 19 वर्षीय फातिमा भी थी, जो अपने परिवार की पहली स्नातक बनने का सपना देख रही थी। इस हमले ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को नई ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया।
हमले के बाद भारत ने अपनी सीमाओं को और मजबूत करने का फैसला किया। 7 मई 2025 को मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु और चेन्नई में बड़े पैमाने पर मॉक ड्रिल आयोजित किए गए। महाराष्ट्र के तारापुर और उरण जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में नौसेना और तटरक्षक बल हाई अलर्ट पर हैं। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को जिम्मेदार ठहराया। विदेश मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को उठाने की घोषणा की, लेकिन पाकिस्तानी सेना प्रमुख के ‘दो-राष्ट्र सिद्धांत’ वाले बयान ने आग में घी का काम किया।
कश्मीर के लोग इस हिंसा से त्रस्त हैं। श्रीनगर के एक चायवाले गुलाम मोहम्मद का दर्द छलकता है, “हम शांति चाहते हैं, लेकिन हर बार बम और गोलियाँ ही मिलती हैं।” सरकार ने घाटी में 500 करोड़ रुपये की रोजगार योजना और बुनियादी ढांचे के लिए नई परियोजनाएँ शुरू करने का ऐलान किया। लेकिन क्या ये योजनाएँ उन युवाओं का भरोसा जीत पाएँगी, जो हिंसा और बेरोजगारी के बीच पिस रहे हैं?
यह तनाव न केवल भारत-पाकिस्तान के रिश्तों के लिए, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरा है। क्या दोनों देश बातचीत की राह चुनेंगे, या यह तनाव युद्ध की आग में बदल जाएगा? यह सवाल हर भारतीय के मन में गूँज रहा है।