
मुंबई (NORTH-EAST):
धार्मिक स्थलों पर लगे स्पीकरों को लेकर हाल ही में मुंबई के कई मुस्लिम बहुल इलाकों में जो माहौल बना है, वह केवल ध्वनि प्रदूषण से जुड़ा मसला नहीं बल्कि क़ानूनी आदेशों के राजनीतिक इस्तेमाल का ज्वलंत उदाहरण बनता जा रहा है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि बिना अनुमति लगे स्पीकरों को हटाया जाए और जिन स्थानों पर नियमों का उल्लंघन बार-बार होता है, वहाँ क्रमबद्ध कार्रवाई हो—पहली बार नोटिस, दूसरी बार जुर्माना और तीसरी बार स्पीकर हटाने का प्रावधान। लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है।

पुलिस कर रही है ग़लत पंचनामा और उत्पीड़न:
उत्तर-पूर्व मुंबई के कई इलाकों में पुलिस ने पहले ही स्पीकर हटाने के नोटिस थमा दिए हैं, जबकि वहाँ के धार्मिक स्थलों पर न तो कोई शोर-शराबा है और न ही कोई पूर्व चेतावनी दी गई थी। मुस्लिम समाज का आरोप है कि यह सब कुछ गलत पंचनामा और गलत जानकारी के आधार पर किया जा रहा है।


राजनीतिक हस्तक्षेप या प्रशासनिक मजबूरी?

इस मामले में मुस्लिम समुदाय ने अपने निर्वाचित सांसद संजय दीना पाटिल से भी मदद की गुहार लगाई, लेकिन लोगों में इस बात की नाराज़गी है कि मुस्लिम वोटों से चुनाव जीतने के बावजूद, उन्होंने इस संवेदनशील मुद्दे पर संवेदनशीलता से निर्णायक अंजाम के लिए काम नहीं लिया .एक तबके का मानना है कि शायद वे दूसरे समाज की नाराज़गी के डर से इस विषय पर चुप हैं।
किरिट सोमैया की भूमिका पर सवाल:
पूर्व सांसद किरिट सोमैया की Z+ सुरक्षा के साथ स्लम इलाकों की मस्जिदों पर की गई ‘अचानक’ विज़िट्स ने समुदाय में डर का माहौल खड़ा कर दिया है। PIL, कंटेम्प्ट पेटिशन और क्रिमिनल पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन जैसे न्यायिक प्रक्रिया के अंतर्गत ध्वनि प्रदुषण को रोकने के लिए सभी समुदाय के धार्मिक स्थलों के लिए मा.हाईकोर्ट की तरफ से कई बार ऐसे आदेश आते है और अभी आया हुवा आदेश उसी प्रक्रिया का एक हिस्सा है.
कानून के पालन के बावजूद उत्पीड़न क्यों?
मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों का साफ़ कहना है कि उन्होंने हाई कोर्ट के आदेशों का स्वागत किया है और अज़ान के नियमों के तहत सुबह ६ बजे से पहले और रात १० बजे केबाद में लाउडस्पीकर बंद रखने का पालन कर रहे हैं। लेकिन राजनीतिक दबाव और कुछ अफ़सरों की ‘टारगेटेड कार्रवाई’ के कारण समुदाय में भय और असुरक्षा का माहौल बन गया है।
मस्जिद कमेटियों का कहना है की, मा.हाईकोर्ट के आदेश के हिसाब से तय किए गए डेसिमल स्तर से ज्यादा अगर अज़ान की आवाज सुनाई देती है तो दिए गए निर्देश के हिसाब से कार्रवाई की जाए. हम सभी मस्जिद कमेटियां ने इस बात को ध्यान में रखते हुवे मस्जिद स्पीकर आवाज को लिमिट में रखने के लिए आधुनिक डिवाइस का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया है, जिससे मा.हाईकोर्ट के आदेश का पालन जरूर होगा. साथ ही मुस्लिम समुदाय आधुनिक तकनीक का रास्ता अपना कर अपने धार्मिक आस्था की वजह से किसी भी समुदाय को तकलीफ ना हो इस तरफ कदम उठाने की सोच में है.
क्या DG पुलिस का आदेश बना उत्पीड़न का औज़ार?
हाई कोर्ट की सख़्ती के बाद, DG महाराष्ट्र पुलिस ने सभी थानों को कार्रवाई का लक्ष्य सौंपा है, लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि बिना जांच और संवाद के, धार्मिक स्थलों पर कार्रवाई की जा रही है ?
निष्कर्ष:
यह मुद्दा सिर्फ़ स्पीकर का नहीं है, यह है न्याय, निष्पक्षता और नागरिक अधिकारों का। मुस्लिम समाज से अपील है कि वह क़ानूनी दायरों में रहकर, सभी नियमों का पालन करते हुए संविधानिक तरीक़े से आवाज़ उठाए। और सरकार से सवाल है—क्या क़ानून का इस्तेमाल न्याय के लिए होगा या राजनीति के लिए?
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